होलिका दहन क्यों मनाई जाती है? जानकर हैरान हो जायेंगे

होली हिंदू धर्म के सबसे महत्वपूर्ण और लोकप्रिय त्योहारों में से एक है। होली त्योहार का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, होलिका दहन। इसे फाल्गुन महिना की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इसके अगले दिन रंग-गुलाल से होली खेली जाती है। इसे धुलेंडी, धुलंडी और धूलि भी कहा जाता है। कई और अन्य हिंदू त्योहारों की तरह होली भी बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माना जाता है। होलिका दहन की तैयारी त्योहार से 40 दिन पहले शुरू हो जाती हैं। लोग सूखी टहनियां, पत्ते जुटाने लगते हैं। फिर फाल्गुन पूर्णिमा की शाम को अग्नि जलाई जाती है और मंत्रों का उच्चारण किया जाता है। दूसरे दिन सुबह नहाने से पहले इस अग्नि की राख को अपने शरीर लगाते हैं, फिर स्नान करते हैं। होलिका दहन का महत्व है कि आपकी मजबूत इच्छाशक्ति आपको सारी बुराइयों से बचा सकती है।दोस्तों होलिका दहन बुराई पर अच्छाई की जीत के पर्व के रूप में मनाया जाता है।होलिका दहन क्यों मनाई जाती है
कब होगा होलिका दहन
होलिका दहन के लिए प्रदोष काल का समय चुन लिया जाता है, जो भद्रा का साया न हो, इस साल होलिका दहन 7 मार्च दिन गुरुवार को है. 07 मार्च को होलिका दहन का मुहूर्त है.माना जाता है कि होलिका दहन करने से पूर्व होलिका की पूजा करने से आपके मन से सभी तरह के भय दूर होते हैं और ग्रहों के अशुभ प्रभाव में भी राहत मिलती है। होलिका की पूजा में ही यह कथा भी पढ़े जाने का चलन काफी समय से चला आ रहा है।
होलिका दहन का पौराणिक महत्व भी है। इस पर्व को लेकर सबसे प्रचलित है प्रहलाद, होलिका और हिरण्यकश्यप की कहानी। राक्षस हिरण्यकश्यप का पुत्र प्रह्लाद, भगवान विष्णु का परम भक्त था। वहीं, हिरण्यकश्यप भगवान नारायण को अपना घोर शत्रु (दुश्मन) मानता था। पिता के लाख मना करने के बाद भी प्रह्लाद विष्णु की भक्ति करता रहा। असुराधिपति हिरण्यकश्यप ने कई बार अपने बेटे को मारने की, लेकिन भगवान विष्णु की कृपा से उसका बाल भी बांका नहीं हुआ। हिरण्यकश्यप की बहन होलिका को वरदान मिला था कि उसे अग्नि नहीं जला सकती। उसने अपने भाई से कहा कि वह प्रह्लाद को लेकर अग्नि की चिता पर बैठेगी और उसके हृदय के कांटे को निकाल देगी। वह प्रह्लाद को लेकर चिता पर बैठी भी, पर भगवान विष्णु की ऐसी माया कि होलिका जल गई, जबकि प्रह्लाद को हल्की सी आंच भी नहीं आई।
होलिका दहन से जुड़ी एक कथा
भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को सुनाई थी। श्री राम के एक पूर्वज रघु, के राज में एक असुर नारी थी। वह नगरवासियों पर तरह-तरह के अत्याचार करती। उसे कोई मार भी नहीं सकता था, क्योंकि उसने वरदान का कवच पहन रखा था। उसे सिर्फ बच्चों से डर लगता। बात एक की है गुरु वशिष्ठ ने बताया कि उस राक्षसी को मारने का उपाय बताया। उन्होंने कहा कि अगर बच्चे नगर के बाहर लकड़ी और घास के ढेर में आग लगाकर उसके चारों ओर नृत्य करें, तो उसकी मौत हो जाएगी। फिर ऐसा ही किया गया और राक्षसी की मौत के बाद उस दिन को उत्सव के रूप में मनाया जाने लगा।
होलिका दहन पर नरसिंह मंत्र-1
नमस्ते नरसिंहाय प्रह्लादाह्लाद दायिने
हिरण्यकशिपोर्वक्षः शिला-टङ्क-नखालये
इतो नृसिंहः परतो नृसिंहो
यतो यतो यामि ततो नृसिंहः
बहिर्नृसिंहो हृदये नृसिंहो
नृसिंहमादिं शरणं प्रपद्ये
नरसिंह मंत्र-2
उग्रं वीरं महा विष्णुम ज्वलन्तम सर्वतो मुखम्
नृसिंहं भीभूतम् भद्रम मृत्युर्मृत्युम् नाम: अहम्
उग्र वीरम महा विष्णुम ज्वालां सर्वतो मुखम्
नृसिंहमं भेशंम् भद्रं मृत्योर्मित्यं नमाम्यहम्
होलिका दहन पर महालक्षमी मंत्र का जाप
नस्तेस्तु महामाये श्री पीठे सुर पूजिते!
शंख चक्र