
विद्यालय से हटाई जाएंगी रसोईया झारखंड के लगभग 40,000 से भी अधिक सरकारी विद्यालय में केंद्र प्रायोजित मध्यान्ह भोजन योजना का संचालन होता है इस योजना के संचालन के पीछे सरकार का पक्ष है कि इसके जरिए ग्रामीण एवं सुदूर इलाकों के बच्चों को कुपोषण जैसी बीमारी से बचाने का एक सार्थक प्रयास के साथ साथ स्कूल में बच्चों की उपस्थिति बढ़ानी है | इसी को लेकर 2003 के आसपास दोपहर का पका हुआ भोजन प्रत्येक दिन अलग-अलग बच्चों के बीच परोसने की व्यवस्था की गई इस योजना के क्रियान्वयन और संचालन की जिम्मेदारी स्थानीय स्तर पर ग्राम शिक्षा समिति और सरस्वती वाहिनी को दी गई |आपको बताते चलें कि योजना के प्रारंभिक चरण में विद्यालय में कार्यरत रसोईया का प्रति बच्चा 25 पैसा के हिसाब से मजदूरी मिलती थी|आज वही बढ़कर 2000 से उपर हो गया है किंतु सरकार ने यह आदेश जारी कर दिया है कि जिन रसोइयों का उम्र 60 वर्ष पूरी हो चुकी है|उनको तत्काल कार्यमुक्त किया जाए क्योंकि सरकारी प्रावधान के अनुसार कोई भी व्यक्ति सरकार के संस्थान में 60 वर्ष आयु पूरा करने के बाद कार्य नहीं कर सकता है इसलिए यह नियम यहां पर लागू किया जा रहा है|
(1) हटाए जाने से रसोईया निराश होंगे आपको जानकारी होना चाहिए कि जब योजना चालू की गई थी तो बहुत ही न्यूनतम मजदूरी पर विद्यालय में रसोईया कार्य करती थी कोई रसोइयों से उनकी इच्छा जानने का प्रयास किया गया उनका कहना है कि हम अभी कार्य करने लायक हैं और हम कॉल करने में सक्षम है जब कम पैसा था तो हम काम करते थे और आज पैसा बढ़ गया तो नियम के तहत हमें हटाया जा रहा है इसलिए हम निराश हैं|
(2) प्रत्येक सरकारी विद्यालयों में दोपहर के भोजन पका कर बच्चों को खिलाने के लिए रसोइयों का चयन वहां के स्थानीय समिति के द्वारा किया जाता है और यह चयन का आधार विद्यालय में नामांकित छात्र संख्या के हिसाब से किया जाता है फिर प्रखंड और जिला से अनुमोदन के उपरांत नव चयनित रसोईया से विद्यालय में कार्य लिया जाता है|
(3) वर्तमान में विद्यालयों में भोजन पकाने को लेकर विशेष ध्यान रखा जा रहा है| खासकर साफ सफाई और रसोईया का ड्रेस कोड भी लागू किया गया है| आपको बता दें कि विद्यालय के रसोईया के लिए एक विशेष प्रकार के पोशाक निर्धारित किया गया है जो सुरक्षा एवं स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से अत्यंत उपयोगी है|
(4 ) विद्यालय में संतुलित भोजन पर विशेष बल दिया जाता है आपको बता दें कि दोपहर के पके भोजन खिलाने के पूर्व विद्यालय के द्वारा बच्चों को अल्पाहार भी दिया जाता है | और सप्ताह में 2 दिन अंडा या फल दिया जाता है| ताकि बच्चे मानसिक रूप से मजबूती के साथ शारीरिक रूप से भी मजबूत हो
(5) पूरे देश में मध्यान्ह भोजन का मॉनिटरिंग माननीय सर्वोच्च न्यायालय करती है और इस योजना का संचालन विद्यालयों में जीरो टॉलरेंस पर होता है किसी भी हालत में मध्यान भोजन बंद नहीं हो यह सुनिश्चित किया जाता है|
(6 )खाद्य सुरक्षा अधिनियम लागू होने के उपरांत अगर विद्यालय में बच्चों को मध्यान भोजन राशि और खाद्यान्न रहने के बाद पकाकर नहीं खिलाया जाता है तो इसकी क्षतिपूर्ति स्कूल को छात्रों के प्रति करनी पड़ती है उनको उनकी उपस्थिति के हिसाब से चावल और नगद राशि भुगतान की जाती है|
(7) केंद्र सरकार और राज्य सरकार दोनों के अनुपातिक राशि के माध्यम से राज्य में बच्चों को मध्यान्ह भोजन परोसने का कार्य होता है
आपको बताते चलें कि आने वाले वर्षों में सरकार स्कूली बच्चों को और अधिक से अधिक पौष्टिक भोजन और संतुलित भोजन परोसने पर विचार कर रही है देखना दिलचस्प होगा कि सरकार आगे क्या करती है|