द्वितीय दिवस की कथा
जय श्री राधे जय श्री कृष्ण
द्वितीय दिवस की कथा
दूसरे दिन की कथा महाराज जी श्री सुधांशु कौशिक जी व्यासपीठ पर बैठने के उपरांत सर्वप्रथम कवि श्रेष्ठ जय देव जी की कृष्ण वंदना जय जय जय देव हरे से प्रारंभ की गई
कथा को आगे बढ़ाते हुए उनके द्वारा बताया गया श्रोता कितने प्रकार के होते हैं
कथा श्रवण करना आपके ऊपर निर्भर करती है आप इतने सरल भाव से कथा श्रवण कर रहे हैं।
नवधा भक्ति की पहली प्रक्रिया है श्रवण करना जब तक आप सुनेंगे नहीं तब तक आप कि श्रद्धा बढ़ेगी नहीं
कथा के बीच में दो स्वर्ण मूर्ति की प्रेरक लघु कथा महाराज जी जी के द्वारा प्रस्तुत की गई जो अत्यंत ज्ञानवर्धक रहे
5 भगवान श्री कृष्ण के द्वारा गीता जी का उपदेश संयुक्त रूप से अर्जुन एवं उनके बड़े भ्राता युधिष्ठिर दोनों को दिया गया किंतु गीता सुनने के बाद अर्जुन के समझ में आ गई जबकि वही युधिष्ठिर महाराज इस प्रदेश को समझ नहीं सके
6 जब विश्वविजय पांडव भीष्म पितामह के मृत्यु शैया आसन पर उनसे मिलने गए तो पितामह ने उन्हें राजधर्म दान धर्म और मोक्ष धर्म की बात सिखाई
7 इस कड़ी में पितामह के द्वारा द्रोपति को उसकी हंसी पर उन्होंने कहा कि उत्तम कुल की स्त्रियां साधारण बात पर हंसती नहीं है
8 भीष्म पितामह मृत्यु शैया पर उनके द्वारा बताया गया कि मुझे अपने पिछले 124 जन्मों की बात स्मरण है
9 जब श्री कृष्ण के द्वारा शिशुपाल के मुक्ति के लिए सुदर्शन चक्र का प्रयोग किया उसी वक्त उनकी एक अंगुली कटी और तत्काल उस कटी अंगुली को बचाने के लिए द्रोपति ने अपनी ओढ़नी चीर कर उनकी अंगुली को बांध दिया तब से भाई बहन का रिश्ता दोनों के बीच कायम हो गया
10 हे गिरधारी हे कृष्ण मुरारी लाज रखो हमारी अत्यंत करण प्रिय एवं भावविभोर भजन प्रस्तुत कर महाराज जी ने अपने श्रोताओं को भाव विभोर कर दिया
11 यदि आपके ऊपर परमात्मा की कृपा बन गई तो दुनिया की ऐसी कोई शक्ति नहीं जो आपको किसी प्रकार की हानि पहुंचा सके
12 भगवान श्री कृष्ण एवं भीष्म पितामह संवाद के क्रम में महाराज जी ने बताया कि भगवान अपने भक्तों के प्रतिज्ञा की रक्षा हेतु अपनी प्रतिज्ञा तोड़ देते हैं यही सीख कृष्ण और भीष्म पितामह के संवाद में परमात्मा दे रहे हैं
13 इसी संवाद में उनके द्वारा बताया गया कि मन की पत्नी का नाम है बुद्धि और भीष्म पितामह अपने शरीर त्यागने से पूर्व ठाकुर जी से विनती किया कि श्री कृष्ण मुरारी आप हमारी पत्नी स्वरूप बुद्धि को स्वीकार करें
14 सुखदेव जी ब्यास नंदन भागवत जी के परम ज्ञाता हैं और इस कड़ी में उनके जन्म की विस्तृत कथा श्रद्धालु भक्तजनों को महाराज जी के द्वारा श्रवण कराया गया
15 नारद जी के प्रसंग के क्रम में महाराज जी के द्वारा बताया गया कि नारद जी बिना कारण के कहीं आते-जाते नहीं हैं तोड़ना और जोड़ना नारद जी की प्रवृत्ति है
16 शिव समान दाता नहीं इस कड़ी में महाराज जी के द्वारा हे निराला मेरा बैल वाला मधुर भजन प्रस्तुत कर पुनः एक बार श्रद्धालु भक्तजनों को झुमा दिया गया
17 भगवान की नजर सभी जगह होती है आप उनके नजर से बच नहीं सकते हैं उनकी नजर कहां हो सकती है आप सोच नहीं सकते हमारे परमात्मा समदर्शी हैं
18 निर्मल मन से साजिदा और सरलता के साथ परमात्मा को पाया जा सकता है
19 बाबा भोलेनाथ और माता सती की अमर कथा के क्रम में विस्तृत रूप से इस कथा को प्रस्तुत करते हुए महाराज जी ने बताया की भगवान शिव के कैलाश पर्वत पर भी कोप भवन बना हुआ था
20 भगवान श्री कृष्ण ने जो सद्गति अपनी माता यशोदा को दिया वही सद्गति जहर पिलाने वाली पूतना को भी दिया अर्थात परमात्मा हर कोई को मोक्ष प्रदान करने का काम करता है
21 सुखदेव जी परमहंस है उनको दोष और मोह स्पर्श नहीं कर सकती है अर्थ अर्थ वह विवेक से परिपूर्ण हैं
22 अपनी प्रेरक प्रसंग को आगे बढ़ाते हुए आचार्य जी के द्वारा बताया गया कि संपत्ति की तीन गतियां होती है भोग दान और विनाश इसलिए अपनी संपत्ति को नेक कार्य में अवश्य लगाएं
23 कथा को संगीतमय और आनंदमई बनाने के लिए महाराज जी ने पुनः एक बार मनमोहक भजन निकली मुरलिया से आवाज श्री राधे राधे प्रस्तुत किया मानो कथा पंडाल में कथा श्रवण कर रहे भक्तगण एक अदृश्य अनुभूति का अनुभव इस भजन काल में कर रहे थे
24 कथा को आगे बढ़ाते हुए महाराज जी के द्वारा बताया गया कि राधा का मतलब होता है अंतर्मुखी यानी कि जो आपके अंतर परमात्मा के प्रति भाऊ विराजमान हैं वही राधा है
25 राजा परीक्षित की कथा प्रस्तुति के क्रम में महाराज जी के द्वारा बताया गया कि जिनके ऊपर ठाकुर जी की कृपा हो उन्हें ही हम परीक्षित कहते हैं
26 महाराज परीक्षित को अपने माता के गर्भ में ही परमात्मा का दर्शन प्राप्त हुआ था
27 कथा आगे चली और फिर चारों युगों का वर्णन करते हुए महाराज जी ने बताया कलयुग क्या क्यों और कैसे साथ ही उन्होंने कहा कि कलयुग का स्थान कहां होता है
28 इस क्रम में जरासंध की कथा एवं जन्मस्थली जन्म का स्वरूप और इसकी महत्व पर आचार्य जी के द्वारा विस्तृत रूप से कथा रखी गई
29 पुणे एक बार महाराज जी के द्वारा शास्त्रीय संगीत पद्धति से करण प्रिय भजन राम नाम नदिया उसमें सब कोई नहाए प्रस्तुत कर कथा के प्रेमियों को झूमने पर मजबूर कर दिया गया
30 उसके बाद नईमीशरण्य नामक स्थान की महानता के बारे में बताते हुए आचार्य श्री के द्वारा कहा गया कि जो सत्संग और कथावाचक होते हैं उनकी मायका आप नेमीशरण को कह सकते हैं
31 यदि आप अपनी आंखों को बंद करके परमात्मा को स्मरण करके उनकी छवि का दर्शन करके आप सोचेंगे तो आपको पता चलेगा कि हम स्वयं से झूठ बोलते हैं
32 यतन करिए और ज्ञान का मार्ग खोजिए इसके माध्यम से आप परमात्मा से जुड़ सकते हैं
33 फिर एक बार महाराज जी के द्वारा अत्यंत ही मधुर भजन करते रहोगे भजन धीरे धीरे प्रस्तुत कर कथा में सभी को भावविभोर कर दिया गया
34 इसके बाद सुखदेव जी की झांकी प्रस्तुत की गई और कथा प्रेमियों ने बारी-बारी से श्री सुखदेव जी के दर्शन किए
35 राजा परीक्षित ने परमहंस सुखदेव जी से सवाल पूछा कि जल्दी मरने का क्या उपाय है इस पर विस्तृत रूप से आचार्य के द्वारा कथा प्रस्तुत की गई
36 जय राम हरे घनश्याम हरे आनंदमई भजन प्रस्तुति के उपरांत आज दूसरे दिन की कथा भगवान की आरती के साथ विराम लेती है सभी भक्तगण आरती और भगवान के प्रसाद ग्रहण कर अपने अपने घर के लिए प्रस्थान कर जाते हैं
… संकलनकर्ता…..
माखन लाल यादव ग्राम श्री राम चौकी बाजार पोस्ट महादेवगंज जिला साहिबगंज झारखंड