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कोरोना की दवा पर वैज्ञानिक को संदेह क्यों। कोरोना की ताजा खबर

कोरोना की ताजा खबर

अभी तक माना जा रहा था कि वैक्सीन दुनिया को कोरोना महामारी से बचा लेगी। लेकिन कुछ नए रिसर्च में दावा किया गया कि बीमारी से ठीक होने वालों में वायरस के खिलाफ मजबूत इम्यूनिटी नहीं बन पा रही है।

जिन लोगों में बन रही है वो सिर्फ कुछ महीने में कम हो रही है। इसलिए वैज्ञानिकों को वैक्सीन कारगर होने पर संदेह होने लगा है।

आखिर क्यों संदेह है कोरोना

ज्यादातर लोगों मे कोरोना के प्रति एक खास तरीके से एंटीबॉडी तैयार करने में मदद करती है। यही एंटीबॉडी से शरीर का प्रतिरक्षा तंत्र मजबूत बनता है और जब भी कोई वायरस शरीर पर हमला करता है तो यह प्रतिरक्षा तंत्र उससे बचता है।

किंग्स कॉलेज लंदन के वैज्ञानिक डॉ. केटी डोरेस के मुताबिक, अगर एंटीबॉडी टिकाउ नहीं हुई और कुछ ही महीनों में इसका स्तर कम होने लगा तो इसका मतलब हुआ कि शरीर संक्रमण से लड़ने की क्षमता खो देगा। यानी की निश्चित तौर पर वैक्सीन का असर कम माना जाएगा।

WHO को भी शक –कोरोना
विश्व स्वास्थ्य संगठन के आपातकालीन निदेशक माइक रायन के दुवार यह उम्मीद करना कि कुछ महीनों में प्रभावी वैक्सीन तैयार हो जाएगी ये सच नहीं है।

एंटीबॉडी कब तक प्रभावी बनी रहेगी, इसके बारे में भी अभी पुष्ट जानकारी नहीं मिल पाई है।

एंटीबॉडी 17 ℅  तक घट गई
किंग्स कॉलेज लंदन के शोधकर्ताओं ने ठीक हो चुके मरीजों पर अध्ययन किया।

उन्होंने पाया कि इन रोगियों में बनी इम्युनिटी कम समय के लिए ही है। करीब आधे लोगों में तीसरे हफ्ते से ही एंटीबॉडी कम होने लगी और तीन महीने में मात्र 17 फीसदी रह गई। यानी ये लोग फिर कोरोना संक्रमित हो सकते थे।

नहीं बनती मजबूत इम्युनिटी – कोरोना
मेलबर्न यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने 41 में से तीन लोगों में मजबूत इम्यूनिटी विकसित हुई।

इतना ही नहीं ठीक हो चुके मरीजों के दोबारा संक्रमित होने पर सिर्फ 14.1 फीसदी इम्युनिटी बनी। इतनी एंटीबॉडी संक्रमण से लड़ने से ज्यादा कारगर नहीं।

सबमें एक तरह के एंडीबॉडी नहीं –कोरोना
एम्स के मेडिसिन विभाग के प्रोफेसर डॉ. नवल विक्रम के अनुसार फ्रांस और चीन में कुछ शोध के मुताबिक एंटीबॉडी शरीर में 80 से 95 दिनों तक रह सकती है।

वैसे भारत में इस पर कोई अध्ययन नहीं हुआ है। किसी रोगी में कितने दिन तक एंटीबॉडी रहेगी यह उस व्यक्ति की शारीरिक क्षमता पर भी निर्भर करता है।

कोरोना

यह भी सही है कि सभी लोगों पूरी मात्र मे एंटीबॉडी  नहीं बनती है। वैक्सीन बनाने के बाद यह देखना होगा कि वह कम से कम 70 से 80 फीसदी लोगों को सुरक्षा दे। इससे कम लोगों को सुरक्षा देने वाली वैक्सीन का फायदा नहीं हो पायेगा।

प्लाज्मा दान करने में  होती दिक्कत
कोरोना मरीजों को प्लाज्मा दान करने में भी यही दिक्कत आ रही है। कोवैलेंसेंट प्लाज्मा बैंक के मुताबिक हर 10 करने के लायक नहीं हैं

क्योंकि उनके शरीर में पर्याप्त मात्रा में न्यूट्रीलाइजिंग एंटीबॉडीज नहीं बन रहे हैं। जब तक पर्याप्त एंटीबॉडीज नहीं बनेंगे तब तक उनके शरीर से प्लाज्मा नहीं लिया जा सकता है।

कोरोना की ताजा खबर
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मास्क लगाने वाले को बुद्धि मे बृद्धि

कोरोनावायरस के संक्रमं को रोकने के लिए मास्क का प्रयोग और सामाजिक दूरी का पालन न करने वालों की बौद्धिक क्षमता कम होती है।

यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिर्फोनिया के एक हालिया शोध में यह खुलासा हुआ है। शोधकर्ताओं ने पाया कि कोई व्यक्ति मास्क पहनने और सामाजिक दूरी का पालन करने का फैसला कैसा लेता है

यह उसकी कामकाजी याददाश्त में संग्रहित जानकारी पर निर्भर करता है। दिमाग का यह हिस्सा एक मनुष्य की बौद्धिक क्षमता को दर्शाता है।

शोधकर्ताओं की टीम ने 850 अमेरिकियों पर सर्वे किया और पाया कि जिनकी बौद्धिक क्षमता यानि इंटेलिजेंस बेहतर थी उन्होंने कोरोनावायरस के प्रसार के पहली चरण में सरकार द्वारा दिए गए सुझावों को बेहतर पालन किया।

इसमें मास्क पहनना और सामाजिक दूरी का पालन करना शामिल था। कि नीति निर्माताओं को व्यक्तियों के सामान्य संज्ञानात्मक क्षमताओं के आधार पर निर्देशों के अनुपालन व्यवहार को बढ़ावा देने कोशिश करनी होगी।

फायदे के बारे में सचेत है बुद्धिमान लोग-
शोधकर्ताओं की टीम ने यह समझने की कोशिश की कि क्यों कुछ लोग मास्क पहनने और सामाजिक दूरी का पालन करने से इनकार कर रहे थे और वहीं कुछ इसका पूरी तरह से पालन कर रहे थे।

टीम ने पाया कि जिन प्रतिभागियों की बौद्धिक क्षमता और कामकाजी क्षमता ज्यादा थी वे निर्देशों के अनुपालन करने के फायदों के बारे में ज्यादा सचेत थे।

उन्हें मास्क पहनने और सामाजिक दूरी का पालन करने के फायदों के बारे में ज्यादा जानकारी थी।

स्मृति का यह हिस्सा फैसला लेने, समीक्षा करने और व्यवहार करने से जुड़ा हुआ है और इसमें कुछ क्षणों के लिए ही जानकारी संग्रहित रहती है।

कामकाजी स्मृति में कितनी जानकारी मौजूद है उससे संकेत मिलता है कि किसी की बौद्धिक क्षमता जैसे बुद्धिमत्ता सीखने का कौशल और समझने की क्षमता कितनी ज्यादा है।

बुद्धिमान लोग निर्देशन का बेहतर पालन 
शोधकर्ता वाईवाई जैंग के  ज्यादा होगी उतने ही बेहतर तरीके से निर्देशों का पालन होगा।

कम बौद्धिक क्षमता वाले लोग निर्देशों की अवहेलना करने में ज्यादा आगे रहे। ऐसे में नीति निर्माताओं और मीडिया को सामान्य बौद्धिक क्षमता के आधार पर निर्देशों के अनुपालन को बढ़ावा देना चाहिए।

उनके जागरूकता अभियान ऐसे होने चाहिए कि कम बौद्धिक क्षमता वाले लोगों को भी समझ में आएं।

उन्होंने कहा, सामाजिक दूरी के नियमों को आदत बनने में अभी समय लगेगा। अभी इन निर्देशों को पालन के लिए लोगों को मानसिक रूप से प्रयत्न करना पड़ रहा है।

लोगों को मास्क पहनने और सोशल डिस्टेंसिंग को कुछ इस तरह अपनाना होगा कि उन्हें इसके लिए अत्यधिक मानसिक दबाव न लेना पड़े।

दुनिया भर में कोरोना वायरसके बढ़ते कहर के बीच अलग-अलग देशों में इसकी दवा और वैक्सीन पर तेजी से शोध चल रहा है. हर देश की कोशिश यह है कि संक्रामक महामारी कोरोना से होने वाली मृत्यु को रोका जा सके.

इस दौरान एक स्टडी में यह बात सामने आई है कि बच्चों में टीबी को फैलने से रोकने के लिए इस्तेमाल में लाई जाने वाली बीसीजी का टीका कोरोना के गंभीर संक्रमण को कम करने के साथ ही मौत रोकने में भी मददगार है. स्टडी करने वालों में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय दिल्ली के रिसर्चर भी शामिल हैं.

कोरोना

JNU की स्टडी में पाया गया कि वैक्सीन बनाने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले बीसीजी स्ट्रेन पर सुरक्षा की गुणवत्ता निर्भर करती है

जिसमें मिक्स्ड, पॉश्चर और जापान के तीन अन्य स्ट्रेन्स से बेहतर है, जो एक साथ 90% से अधिक बीसीजी टीके का उपयोग करते हैं.

इस स्टडी को सेल डेथ एंड डिजीज में प्रकाशित किया गया. प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज में प्रकाशित अमेरिका के दूसरे अध्ययन ने भी बीसीजी टीकाकरण को कोविड की कम मौत की वजह माना है.

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में सेंटर फॉर मॉलिक्यूलर मेडिसिन के चेयरपर्सन गोवर्धन दास ने कहा 1,000 से जयादा मामलों वाले देशों के डेटा के विश्लेषण से यह सामने आया है ।

भारत में ही नहीं बल्कि अन्य देशों में भी जिनका बीसीजी टीकाकरण हुआ है, वे उन लोगों की तुलना में अधिक सुरक्षित हैं जिन्हें बीसीजी का टीका नहीं लगा है।

हमें लगता है कि बीसीजी के इस्तेमाल से संक्रमण और संक्रमण की गंभीरता दोनों को कम करने में मदद मिलेगी.”

दुनिया भर में लगभग 1 अरब बच्चों को हर साल बीसीजी वैक्सीन का टीका लगता है.

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7 Comments

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